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MOHAMMAD SALMAN KHAN

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भूल गए हो क्या तुम हमको
भूल गए हो क्या तुम हमको
पूछ रही है बीकानेर की चंद दुकानों की कुर्सी
जिसपे बैठ कर मसला करते चुना और देसी सुरती
पान  की दूकान पर अक्सर पेपर पढ़ने आ जाते थे
नहर और पोखरी  पर रोज़ टहलने आ जाते थे
अमियाँ की डलिया हैं पुकारे
आ जा वो परदेसी आ रे
कुछ तो आज बता तू हमको
भूल गए हो क्या तुम हमको

देख नहर  की पुलिया  टूट रही हैं धीरे-धीरे
घास कटीली इसकी सुषमा लूट रही हैं धीरे-धीरे
इसमे आ जातीं हैं अक्सर गंदे पानी  गाँवों के
नहीं मज़ा अब आता है पास के पेड़ के छावों के
खैर बता तू अपनी भी कुछ
और सुना तू अपनी भी कुछ
कुछ तो आज बता तू हमको
भूल गए हो क्या तू हमको

घर-घर में शौचालय बन गया कोई न आता कच्चा पोखरा
नहरिया  की बात छोड़ दे भूल गए सब पक्का पोखरा
गोदाम  तो वीरान हो गई मुश्किल से कोई जाता है
कुछ लोगों की बात छोड़ दे बाकी और कौन आता है
खैर बता तू अपनी भी कुछ
और सुना तू अपनी भी कुछ
कुछ तो आज बता तू हमको
भूल गए हो क्या तू हमको

अम्बारी  बाज़ार में  अब चहल-पहल नहीं पहले जैसी
जनता कॉलेज  में भी हलचल नहीं अब पहले जैसी
रौनक इसकी गलियों की जाने कहाँ खो गई है
हिन्दू-मुस्लिम का वो प्यार अँधेरे में कंही सो गई है
खैर बता तू अपनी भी कुछ
और सुना तू अपनी भी कुछ
कुछ तो आज बता तू हमको
भूल गए हो क्या तू हमको

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